अंतहीन भूख …

ये "भूख" बड़ी अजीब चीज़ है। मेहनत कर पसीना बहाने वालों को पेट की भूख सता रही है. झक सफ़ेद कुर्ता-पायजामा पहने लोगों को कुर्सी की भूख है. नौकरशाह नोटों की भूख से तड़फ रहा है. अशांत लोगों को मन की भूख तो किसी मनचले को तन की भूख परेशां करने लगी है। भूख का कोई अंत नहीं है. एक अदद रोटी …एक अदद मोटी ...एक अदद नोटों का बण्डल …तो एक अदद वोट की  दरकार है! झुग्गियों में भी अब पड़ने लगे हैं कदम! सीधे मुंह बात न करने वालों के मुंह से झड़ने लगी है मिश्री की डालियाँ।  सुर्खियों की सियायत नेताओं की फितरत होती है। चेहरे चमकने लगे हैं और तस्वीरें छपने लगी हैं!  न्यूज चेनल चिल्ल- पों तो अखबार अलाप भरने लगे हैं. क्या- क्या हथकंडे नहीं अपनाये जा रहे हैं! जुबान की बंदूक से बयानों की बारूद दागी जा रही है! "राम", "रहीम"  से तो "रहीम", "राम" से गले मिल रहा है यानी चुनाव है भई। 

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