" काम ज्यादा और कम मजदूरी "
मई का मौसम...., आग उगलता सूरज...., हाय रे गर्मी. हर तरफ सन्नाटा पसरा था. गर्मी और लू के थपेड़ों ने दिन में बाहर निकलने ख़बरदार कर रखा था फिर भी मुझे आज इमरजेंसी में निकलना पड़ गया.यद्यपि आसमान में बादल छाये हुए थे तथापि उमस बढ गई थी. कभी धूप तो कभी छांव की स्थिति थी. इसका कारण सिर्फ और सिर्फ यह था कि नवतपा के बाद भी बीती शाम घने बादल छाये थे और रात बूंदाबांदी हुई थी. आप समझ सकते हैं कि इससे तापमापी का पारा जरुर गिर गया होगा पर उमस की परेशानी बरक़रार थी. मै जिनसे मिलने गया था, वो तो नहीं मिला पर उसी मोहल्ले में लुंगी- बनियान पहने एक शख्स अपनी देहरी पर खड़े जरुर मिला गया. हाँथ का इशारा हुआ और मेरा दाहिना पैर बाइक का ब्रेक दबाने में व्यस्त हो गया. जब गाड़ी रुकी तो मैंने मुंह से लेकर कान और नाक तक लपेटा हुआ पंछा हटाया. आँखों पर पड़े काले शीशे का ऐनक निकाला. मेरा चेहरा देख लुंगी-बनियानधारी ने मुझे गले लगा लिया. वो मेरा सहपाठी निकाला. जब पढ़ते थे तो खूब शरारत किया करते थे, नगर निगम और राजीव फैन्स क्लब से बल्ब चुराकर बेचना और मिलने वाले पैसे से गुटखा-पान की तलब पूरी करना अपनी दिनचर्या में शामिल था.अब वह पुलिस बन गया है. उसने जिद्दकर अपने घर में बैठने मुझे मजबूर कर दिया. धूप से सीधे अन्दर कमरे में गया तो मेरी आँखें चौंधिया सी गई थी. कुछ देर तक अँधेरा छाया रहा. तीन गिलास मटकी का ठंडा पानी हलक से नीचे जब उतरा तब राहत मिली. चाय की जगह छांछ पर सहमति बनी. किचन में तैयारी चल ही रही थी कि बेल बज़ने लगी. छांछ भरे गिलास परोसकर उनकी श्रीमती ने दरवाजा खोला. सामने लम्बे बालों वाली एक लड़की खड़ी थी. हाथ में नोटपैड और कंधे में बैग लटक रहा था. आगंतुक का भी सत्कार हुआ. हम सब छांछ का मज़ा लेने लगे. इसबीच " आपकी शादी कब हुई...? बच्चे कितने है...? किस-किस उम्र के है...? ऐसा क्या...कौन सा महीना चल रहा है....? चेक-अप किस डाक्टर के पास करवा रही हो...? सोनोग्राफी करवाई क्या..? डेट कब का मिला है...?" लड़की सवाल पर सवाल किये जा रही थी. एकदम अटपटे सवालों की झड़ी होने लगी. हमें लगा, ये कोई महिला स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता होगी और " जच्चा-बच्चा " जैसे किसी कार्ययोजना को लेकर निकली होगी. मैंने पूछ ही लिया " आप नर्स है क्या..?" जवाब चौकाने वाला था. दरअसल वो एक निजी स्कूल की वर्कर है और संचालक ने उसे न सिर्फ भर्ती अभियान में लगाया है बल्कि किनके घर कब बच्चा पैदा होने वाला है, की जानकारी भी जुटा रखने की जिम्मेदारी दे रखी है. उसका कहना था कि घर-घर घूमने के अलावा उन्हें महिला रोग चिकित्सक से लेकर निजी नर्सिंग होम्स में भी चक्कर लगाने पड़ते है. मैंने कहा-" तब तो अच्छा पैसा भी मिलाता होगा..?" जवाब आया- " नहीं भइया, हम जैसे मज़दूरों की अपनी मज़बूरी है, काम ज्यादा और कम मजदूरी है."
Comments
Post a Comment