तलब के बहानें........

पान की तलब ने मुझे बरबस ठेले में रुकने मजबूर कर दिया . जर्दायुक्त पान बनाने कहकर मै इंतजार करने लगा, तभी एक सज्जन हांथ में रेडियो लिये फ़िल्मी गाना " जिया बेक़रार है ....छाई बहार है ....आजा मोरे बालमा ....तेरा इंतजार है ....."सुन रहा था . संचार क्रांति के इस युग में रेडियो सुनते देख लोगों को जरुर अटपटा लगा होगा किन्तु मुझे यक़ीनन वो दिन याद आ गए जब रेडियो पर मै विविध भारती सुनने से कभी नहीं चूकता था . यूं तो यह एक फरमाइशी कायर्क्रम था . लोगों की फरमाइश पर गीत सुनाये जाते थे . इस कायर्क्रम के उदघोषक की आवाज़ के जादू से कौन वाकिफ नहीं है. फरमाइश के क्रम में एक गाँव का नाम प्राय: आया करता था . वह है " झुमरी -तलैया ." मै पहले इस नाम को आयोजकों के दिमाग की उपज समझता था . सोचता था कि कार्यक्रम को रोचक बनाने सायद यह कोई गाँव का कोई छदमनाम है .बहुत बाद में पता चला कि इस नाम का गाँव वाकई में है जो झारखण्ड में स्थित है .गाँव के नाम के अटपटेपन के कारण मै खुद इसका मजाक उड़ाया करता था . आपने क्षेत्र मै भी कई अटपटे नाम वाले गाँव जैसे चोकी मै "मान्डिंग -पिंडिंग" "भगवान् टोला " छुरिया मै "निगनचुआ " कवर्धा (अब कबीरधाम ) के बोडला में "आमाघाटकांदा " जैसे ढ़ेरों नाम वाले गाँव है जो जन्नत से जहन्नुम तक शामिल कहे जा सकते है

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