मै और मेरी मनोवृत्ति ....



आज जब मै शाम को घर लौटा तो घडी के कांटें साढ़े पांच बजा चुके थे . रोज की तरह चाय की गरम प्याली पेश हुई . मै चाय की चुस्कियां लेने लगा . तक़रीबन इसी समय कामवाली बाई अपना काम करने लगी थी . मैंने देखा कि जैसे बचपने में लड़कियां फुगडी खेलती हैं, ठीक उसी तर्ज पर वह पोछा लगा रही थी. कभी पैर उठाने तो कभी कुर्सी खिसकने से मेरी चाय का मज़ा किरकिरा हो रहा था. इससे मेरी मनोवृत्ति बिगड़ने भी लगी थी. इस बीच मैंने एक और बात पर गौर किया. जैसे-जैसे वह पोछा लगाते जाती थी, उसके मुंह से "सी...... सी.......सी......." की लम्बी सांसो वाली आवाज़ निकलते जा रही थी. क्या आपने ऐसी आवाज़ किसी कामकाजी महिला या युवती के मुंह
से सुनी है? मैंने उत्सुकतावश "ये सी......सी.....सी....." क्या है? पूछ ही लिया. छुई-मुई कि तरह वह शरमाकर रह गयी लेकिन मुझे मेरा जवाब नहीं मिला. मैं यही सोचने लगा "सी.....सी....की आवाज़ शायद काम के बोझ व किसी थकान की वजह से नहीं अपितु कार्य को गति प्रदान करने के लिए उत्प्रेरक स्वरुप मुह से निकलती होगी " इस सम्बन्ध में आप क्या सोचते है???

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